दुष्प्रभाव आधुनिकता का
जन मानस में एक बात प्रचलन में है और वो ये कि सिने अभिनेता अक्षय कुमार देश की सेहत को लेकर बेहद सजगता लिए हुए काम करते रहते हैं। वे किसी फिल्म में केवल अभिनेता हों या फिर निर्माता निर्देशक भी हों, उनकी प्रत्येक फिल्म में देश हित या जनहित का कोई न कोई मुद्दा जरूर होता है। उदाहरण के लिए टॉयलेट, पैडमेन इस लिहाज से उनकी उत्कृष्ट फिल्में कही जा सकती हैं। अबकि बार अक्षय कुमार ने दक्षिण भारत के सुपर स्टार और राजनेता रजनीकांत के साथ स्क्रीन साझा करते हुए फिल्म 2.0 का सृजन किया तो उसमें भी एक संदेश देना नही भूले। वो संदेश है मानव जाति और पशु पक्षियों की जिंदगी के बचाव का। इस फिल्म में अक्षय कुमार संदेश देते दिखाई देते हैं मोबाईल फोनों को बेतहाशा बढ़ रहा प्रचलन मानव प्रजाति और पशु पक्षियों के लिए कितना खतरनाक है। एक तरह से देखा जाए तो उनका ये संदेश युवाओं के साथ साथ प्रबुद्ध वर्ग के दिलो दिमाग पर असर भी कर रहा है। अब लोग बात करने लगे हैं कि मोबाईल टॉवरों से होने वाले रेडियेशन को किस प्रकार कम किया जाए और कैसे बेतहाशा बढ़ रहे टॉवरों की संख्या पर रोक लगाई जा सके। इन्ही मुद्दों को लेकर भोपाल के लोगों ने राजधानी में यहां वहां लगाए जा रहे और लगाए जा चुके टॉवरों की बढ़ती तादाद को लेकर चिंता जताई है। लोगों को मानना है कि या तो सरकार को ये दावा करना चाहिए कि फिल्म 2.0 में रेडियेशन के दुष्प्रभावों को लेकर जो कुछ दिखाया जा रहा है वो निहायती झूठ है। और यदि फिल्म में दिखाया गया दृष्यांकन सही है तो फिर सरकार और उसके जिम्मेदार विभगों को बेतहाशा बढ़ रहे टॉवरों और मोबाईल फोनों के बेइंतिहा प्रयोग पर रोक लगाना चाहिए। लेकिन ऐसा आसानी से हो जाएगा, इस बात की कल्पना कम से कम सरकारी अमले से तो नही की जा सकती। इसलिए इस काम को अंजाम देने की खातिर एक आक्रामक जनआंदोलन की आवश्यकता है। क्यों कि एक बात तो स्पष्ट है, वो ये कि भोपाल समेत पूरे प्रदेश में इन टॉवरों का विरोध भारी पैमाने पर होता रहा है। लेकिन क्षेत्रीय निकायों की संदिग्ध कार्यप्रणाली के चलते ये रातों रात संख्या में इजाफा पाते चले जा रहे हैं। कम से कम लोग ये तो पहले से ही मानते आ रहे हैं कि टॉवरों से निकलने वाला रेडियेशन मनुष्य और खासकर बच्चों के दिलो दिमाग पर घातक प्रभाव छोड़ता है। लेकिन फिल्म 2.0 से एक बात सामने आ रही है कि पक्षियों पर तो जानलेवा असर शुरू भी हो चुका है। इससे आम आदमी को मोबाईलों के अनावश्यक उपयोग और जहां तहां बढ़ रहे टॉवरों को लेकर सोचने की नई दिशा तो मिली है और वो नई ऊर्जा के साथ अब मोबाईल टॉवरों का विरोध करने लगा है। यदि भोपाल की ही बात करें तो यहां की विभिन्न कालोनियों से ये खबरें आती रहती हैं कि अमुक स्थान पर निवासियों ने अपने रिहायशी इलाकों में मोबाईल टॉवरों को लगाए जाने का विरोध किया। ये बात और है कि इस बाबत नगर निगम के अधिकारी उदासीन रवैया दिखाते नजर आए और विरोध को टालने की गरज से ये टॉवर आधी रात के दौरान चुपचाप लगाने की गतिविधियां सामने आती रहीं। अब ये जांच का बिषय है कि उक्त टॉवर वैध हैं अथवा अवैध। क्यों कि अभी तक जो आंकड़ हमें प्राप्त हुए हैं उनके मुताबिक तो राजधानी में तीन सौ से ज्यादा अवैध टॉवर अर्वध लगे हुए हैं। इनमें से लगभग दो दर्जन टॉवर ऐसे भी हैं जिनका स्थानीय निवासियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। लेकिन पता नही क्यों निगम का अमला इन्हें लेकर टालम टोल करता नजर आ रहा है। ये आरोप इसलिए भी जगह पाते हैं, क्यों कि अनेक टॉवर ऐसे भी हैं जो स्कूलों के आस पास लगे हुए हैं। कुछ टॉवर तो रिहायशी मकानों की छत पर भी लगाए जा चुके हैं जो कि हर लिहाज से खतरनाक ही हैं। कुल मिलाकर टॉवरों को लगाए जानेे को लेकर जो नियम कायदे स्थापित हैं, यदि उन का पालन हो जाए तो दावा किया जा सकता है कि आधे से ज्यादा टॉवर तो उखाड़े जाने की श्रेणी में ही आ जाएंगे। लिखने का आशय ये कि शहरी क्षेत्रों में लगाए जाने वाले टॉवरों को लेकर जो असावधानी नगर निगम के अमले द्वारा बरती गई है उसका सुधार होना जरूरी है और इस बात पर जांच अपेक्षित है कि किन अधिकारियों की लापरवाही के चलते ये टॉवर रिहायशी इलाकों में आकार लेते चले गए। युवाओं को भी चाहिए कि वे मोबाईल के अनावश्यक इस्तेमाल से बचे। क्यों कि जब इंसान इससे प्रभावित हो रहे हैं तो फिर ये अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि छोटे छोटे पशुओं और पक्षियों पर इसका कितना घातक प्रभाव पड़ रहा होगा।
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